History of jodhpur (जोधपुर का इतिहास)
स्वतन्त्रता से पहले Rajasthan अनेक रियासतों यथा Princely States में बंटा हुआ था । इन्हीं रियासतों में से एक था - मारवाड़ ( Marwar)
आज हम इसी मारवाड़ या जोधपुर के इतिहास के बारे में जानेंगे वो भी आसान और interesting भाषा में।
इतिहासकारों के अनुसार, नया पाल ने कन्नौज में एक साम्राज्य की स्थापना की थी जो जो सात सौ सालों तक खूब फला फूला, इसके बाद इस पर मोहम्मद गौरी ने इसमें interest लिया और इसे जीतकर इसपर अपना नियंत्रण कर लिया ।
जोधपुर का तत्कालीन शासक जयचंद गौरी से बचकर भागने के प्रयासों के दौरान ही मृत्यु को प्राप्त हो गया । उसके बाद, जयचंद के पुत्र शिवाजी ने (बाहुबली टाइप) राज्य पर पुनः अधिकार स्थापित किया और प्रतिहारों पर विजय प्राप्त करने के बाद मंडोर में राठौड़ साम्राज्य की स्थापना की।
शुरुआत में, मंडोर को ही capital माने राजधानी घोषित किया गया था पर 1459 के आसपास राठौड़ों ने महसूस किया कि उन्हें एक अधिक सुरक्षित राजधानी की आवश्यकता थी और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राव जोधा द्वारा जोधपुर शहर का निर्माण किया गया ।
जोधपुर बनने का एक और reason भी था दरअसल राव जोधा के पिता रैनमल को एक षड्यंत्र रचकर मार दिया गया था, और जोधा को अपनी life बचाने के लिए भागना पड़ा था । कुछ समय बाद उन्होंने अपना राज्य दोबारा हासिल कर लिया । तब उसके एक भरोसेमंद ने उसे थार मरुस्थल के किनारे बलुआ पत्थर से बनी एक पहाड़ी के शीर्ष पर नई राजधानी स्थापित करने की सलाह दी थी ।
मुगलों और राजपूतों के बीच संबंध
राठौड़ों के लगभग सभी मुगलों के साथ अच्छे relations ही रहे थे अकबर तो मानो इस राज्य का best friend रहा । लेकिन औरंगजेब के टाइम situation कुछ बदल गई क्योंकि औरंगजेब के शासनकाल के दौरान, महाराजा जसवंत सिंह ने औरंगजेब के पिता शाहजहां को पूर्ण समर्थन दिया था और इससे automatically वे औरंगजेब के विरोध में आ गए । वैसे इस समय इन पिता पुत्र की लड़ाई के कारण कई रियासतें भी आमने सामने थीं ।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद, महाराजा अजीत सिंह ने अजमेर से मुगलों को खदेड़ कर बाहर कर दिया और इसे भी मारवाड़ (जिसे अब जोधपुर के नाम से जाना जाता है) में add कर दिया । यानी अजमेर, अजीत ने जीत लिया ।
अठारहवीं शताब्दी में जोधपुर और राजस्थान की अन्य रियासतों - जयपुर और उदयपुर के बीच अनेक युद्ध हुए। महाराजा अभय सिंह (जो अजीत सिंह के वंशज थे) ने अहमदाबाद पर अधिकार कर लिया । इसके बाद जोधपुर राज्य ने 1818ई. (दो बार अठारह - याद रखना ) में अंग्रेजों के साथ contract या समझौता कर लिया। ऐसा माना जाता है कि जोधपुर ने अंग्रेजों के अधीन बहुत प्रगति की। इस समझौते के बाद मारवाड़ी व्यापारियों की मानो बल्ले बल्ले हो गई और उनको पूरे देश में व्यापार में एक महत्वपूर्ण स्थान मिल गया ।
स्वतन्त्रता के बाद का इतिहास
1947 के बाद भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात, जोधपुर रियासत का भारत संघ में विलय कर दिया गया।
महाराजा उम्मेद सिंह को जोधपुर का स्वतन्त्रता से पूर्व का अंतिम राजा माना जाता है।
तो यह था जोधपुर का इतिहास आसान भाषा में ।
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जोधपुर का तत्कालीन शासक जयचंद गौरी से बचकर भागने के प्रयासों के दौरान ही मृत्यु को प्राप्त हो गया । उसके बाद, जयचंद के पुत्र शिवाजी ने (बाहुबली टाइप) राज्य पर पुनः अधिकार स्थापित किया और प्रतिहारों पर विजय प्राप्त करने के बाद मंडोर में राठौड़ साम्राज्य की स्थापना की।
मंडौर के मंदिर source :- wikipedia |
शुरुआत में, मंडोर को ही capital माने राजधानी घोषित किया गया था पर 1459 के आसपास राठौड़ों ने महसूस किया कि उन्हें एक अधिक सुरक्षित राजधानी की आवश्यकता थी और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राव जोधा द्वारा जोधपुर शहर का निर्माण किया गया ।
राव जोधा source :- wikipedia |
जोधपुर बनने का एक और reason भी था दरअसल राव जोधा के पिता रैनमल को एक षड्यंत्र रचकर मार दिया गया था, और जोधा को अपनी life बचाने के लिए भागना पड़ा था । कुछ समय बाद उन्होंने अपना राज्य दोबारा हासिल कर लिया । तब उसके एक भरोसेमंद ने उसे थार मरुस्थल के किनारे बलुआ पत्थर से बनी एक पहाड़ी के शीर्ष पर नई राजधानी स्थापित करने की सलाह दी थी ।
मुगलों और राजपूतों के बीच संबंध
राठौड़ों के लगभग सभी मुगलों के साथ अच्छे relations ही रहे थे अकबर तो मानो इस राज्य का best friend रहा । लेकिन औरंगजेब के टाइम situation कुछ बदल गई क्योंकि औरंगजेब के शासनकाल के दौरान, महाराजा जसवंत सिंह ने औरंगजेब के पिता शाहजहां को पूर्ण समर्थन दिया था और इससे automatically वे औरंगजेब के विरोध में आ गए । वैसे इस समय इन पिता पुत्र की लड़ाई के कारण कई रियासतें भी आमने सामने थीं ।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद, महाराजा अजीत सिंह ने अजमेर से मुगलों को खदेड़ कर बाहर कर दिया और इसे भी मारवाड़ (जिसे अब जोधपुर के नाम से जाना जाता है) में add कर दिया । यानी अजमेर, अजीत ने जीत लिया ।
अजीत सिँह source :- wikipedia |
अठारहवीं शताब्दी में जोधपुर और राजस्थान की अन्य रियासतों - जयपुर और उदयपुर के बीच अनेक युद्ध हुए। महाराजा अभय सिंह (जो अजीत सिंह के वंशज थे) ने अहमदाबाद पर अधिकार कर लिया । इसके बाद जोधपुर राज्य ने 1818ई. (दो बार अठारह - याद रखना ) में अंग्रेजों के साथ contract या समझौता कर लिया। ऐसा माना जाता है कि जोधपुर ने अंग्रेजों के अधीन बहुत प्रगति की। इस समझौते के बाद मारवाड़ी व्यापारियों की मानो बल्ले बल्ले हो गई और उनको पूरे देश में व्यापार में एक महत्वपूर्ण स्थान मिल गया ।
स्वतन्त्रता के बाद का इतिहास
1947 के बाद भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात, जोधपुर रियासत का भारत संघ में विलय कर दिया गया।
उम्मेद भवन source :- wikipedia |
महाराजा उम्मेद सिंह को जोधपुर का स्वतन्त्रता से पूर्व का अंतिम राजा माना जाता है।
तो यह था जोधपुर का इतिहास आसान भाषा में ।
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