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महाराणा प्रताप का इतिहास - आसान भाषा में

महाराणा प्रताप का इतिहास/ कहानी सरल शब्दों में । इस आसान से लेख में जानिए Rana Pratap के बारे में । Maharana Partap के जन्म से मृत्यु तक की story थोड़े से words में । भारत के इस वीर पुत्र और राजस्थान के सपूत की गाथा समझिए मात्र एक बार पढ़कर।


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 Maharana pratap
source : wikipedia


महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ किले ( Rajsamand) में हुआ।


महाराणा Partap का बचपन का nickname कीका था।


Rana Pratap के पिता का नाम उदय सिंह और माता का name जयवंता बाई था ।


जयवंता बाई के अतिरिक्त  उदय सिंह की दूसरी wife भी थीं जिनका नाम था ;- धीर बाई  इनको रानी भटियाणी के name से भी जाना जाता है।


धीर बाई का भी एक पुत्र था जिसका नाम था जगमाल । यह अपने इस पुत्र को मेवाड़ का Prince या उत्तराधिकारी बनवाना चाहती थी।


अब जैसा कि भारत के अनेक  dynasties (राजवंशों) में हुआ वैसा ही यहां भी हुआ ;  उत्तराधिकार के लिए  दोनों भाइयों में तकरार हुई और  दो खेमे बन गए।


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महाराणा प्रताप की मूर्ति
Ankur P • CC BY SA2.0
(wikipedia)

Senior members , मंत्रियों आदि के सहयोग से प्रताप को उत्तराधिकार प्राप्त हुआ । राणा प्रताप का  दो बार राज्याभिषेक हुआ। पहला1572 ई.में गोगुंदा में और second time इसी वर्ष कुंभलगढ़ में हुआ । दूसरा राज्याभिषेक विधिविधान के according हुआ ।


प्रताप के उत्तराधिकारी बनने पर जगमाल अकबर  की side में चला गया ।


महाराणा प्रताप की ग्यारह wives (पत्नियां) थीं।


अकबर महाराणा प्रताप को अपने under लाना चाहता था वह भी बिना युद्ध के ;  इसलिए उसने दो वर्षों में चार messengers  उनको मनाने के लिए भेजे । इनके names थे जलाल खां, मान सिंह,भगवान दास व टोडरमल । परंतु महाराणा नहीं माने।


महाराणा प्रताप द्वारा मुगलों का प्रस्ताव accept नहीं करने के कारण 1576 ई. में मुगलों तथा  महाराणा प्रताप की सेना के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ ।

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हल्दी घाटी का युद्ध
source : wikipedia


इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह ने किया।   unfortunately राणा प्रताप को इस युद्ध से भागना पड़ा । इस युद्ध में दोनों तरफ की सेनाओं को अत्यधिक नुकसान हुआ। कई इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में किसी की भी victory (विजय) नहीं हुई क्योंकि महाराणा की मुट्ठी भर सेना ने Mughal army को पीछे हटने पर विवश कर दिया था और मुगल सेना के भी पैर उखड़ने लगे थे ।


हल्दीघाटी के पश्चात 1582 में राणा और मुगलों के बीच दिवेर का battle हुआ जिसे मेवाड़ का मैराथन भी बोला जाता है । इस युद्ध से राना प्रताप को अपना खोया हुआ राज्य दोबारा मिल गया ।


यह युद्ध mughals और राणा की armies (सेनाओं) के मध्य लंबे समय तक चली खींचतान के नतीजतन हुआ।


दिवेर की victory के बाद अगले दो-तीन वर्षो (1585 ई. तक) में राणा ने अपना खोया हुआ राज्य लगभग वापस पा लिया ।


1597 ई. में महाराणा प्रताप की  चावंड में death हो गई । राणा प्रताप ने जीते जी कभी भी मुगल साम्राज्य के समक्ष अपना सिर नहीं झुकाया । उनके डर से अकबर ने अपनी राजधानी change करने लाहौर कर दी थी और महाराणा के देहावसान के बाद दोबारा से आगरा कर दी ।

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